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"अधूरा है: सुन्दर है/ बलदेव वंशी" के अवतरणों में अंतर
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+ | ऊनी धागों में लगी अनजानी गाँठें, उचटने | ||
+ | सिलाई के टूटे-छूटे धागे | ||
+ | चित्र में उभरी, बे-तरतीब रंगतें-रेखाएं | ||
− | + | शायद इसीलिए | |
+ | अभावों में भाव अधिक खिलते हैं, | ||
+ | चुभते सालते और खलते हैं | ||
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+ | एक टीस की अबूझ स्मृति | ||
+ | जीवन भर सालने वाली | ||
+ | आकाश को दो फाँक करती तड़ित रेखा | ||
+ | और ऐसा ही और भी बहुत कुछ | ||
+ | जिसे लोग अधूरा या अबूझ मानते आए हैं | ||
+ | उसे ही सयाने लोग | ||
+ | पूरा और सुन्दर बखानते गए हैं | ||
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+ | चाहे हुए रास्ते, जीवन और पूरे व्यक्ति | ||
+ | कहाँ मिलते हैं! | ||
+ | नियति के हाथों | ||
+ | औचक मिले | ||
+ | मानसिक घाव | ||
+ | पूरे कहाँ सिलते हैं!... |
10:15, 6 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
अधूरा है!
इसीलिए सुन्दर है!
दुधिया दाँतों तोतला बोल
बुनाई हाथों के स्पर्श का अहसास!
ऊनी धागों में लगी अनजानी गाँठें, उचटने
सिलाई के टूटे-छूटे धागे
चित्र में उभरी, बे-तरतीब रंगतें-रेखाएं
शायद इसीलिए
अभावों में भाव अधिक खिलते हैं,
चुभते सालते और खलते हैं
एक टीस की अबूझ स्मृति
जीवन भर सालने वाली
आकाश को दो फाँक करती तड़ित रेखा
और ऐसा ही और भी बहुत कुछ
जिसे लोग अधूरा या अबूझ मानते आए हैं
उसे ही सयाने लोग
पूरा और सुन्दर बखानते गए हैं
चाहे हुए रास्ते, जीवन और पूरे व्यक्ति
कहाँ मिलते हैं!
नियति के हाथों
औचक मिले
मानसिक घाव
पूरे कहाँ सिलते हैं!...