Last modified on 25 मई 2009, at 18:51

"यासिर अराफ़ात के लिए / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

(New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: परवीन शाकिर Category:कविताएँ Category:परवीन शाकिर ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ ...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
रचनाकार: [[परवीन शाकिर]]
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=परवीन शाकिर
[[Category:परवीन शाकिर]]
+
}}
 
+
[[Category:ग़ज़ल]]
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
 
+
 
+
 
आसमान का वह हिस्सा
 
आसमान का वह हिस्सा
  
पंक्ति 66: पंक्ति 63:
  
 
--------------
 
--------------
तसर्रुफ़=रद्दोबदल या परिवर्तन; विलायत= विदेशीपन; अह्द=वादा; आतिशो-आबो-बाद=आग,पानी और हवा;
+
तसर्रुफ़=रद्दोबदल या परिवर्तन; विलायत= विदेशीपन;   अह्द=वादा;  
अर्ज़्रे-वतन= देश का नक्शा; हाफ़िज़े= स्मृतियां
+
आतिशो-आबो-बाद=आग,पानी और हवा; अर्ज़्रे-वतन= देश का नक्शा; हाफ़िज़े= स्मृतियां

18:51, 25 मई 2009 के समय का अवतरण

आसमान का वह हिस्सा

जिसे हम अपने घर की खिड़की से देखते हैं

कितना दिलकश होता है

ज़िन्दगी पर यह खिड़की भर तसर्रूफ़

अपने अंदर कैसी विलायत रखता है

इसका अंदाज़ा

तुझसे बढ़कर किसे होगा

जिसके सर पर सारी ज़िन्दगी छत नहीं पड़ी

जिसने बारिश सदा अपने हाथों पर रोकी

और धूप में कभी दीवार उधार नहीं मांगी

और बर्फ़ों में

बस इक अलाव रौशन रखा

अपने दिल का

और कैसा दिल

जिसने एक बार किसी से मौहब्बत की

और फिर किसी और जानिब भूले से नहीं देखा

मिट्टी से इक अह्द किया

और आतिशो-आबो-बाद का चेहरा भूल गया

एक अकेले ख़्वाब की ख़ातिर

सारी उम्र की नींदें गिरवी रख दी हैं

धरती से इक वादा किया

और हस्ती भूल गया

अर्ज़्रे वतन की खोज में ऎसे निकला

दिल की बस्ती भूल गया

और उस भूल पे

सारे ख़ज़ानों जैसे हाफ़िज़े वारे

ऎसी बेघरी, इस बेचादरी के आगे

सारे जग की मिल्कियत भी थोड़ी है

आसमान की नीलाहट भी मैली है


तसर्रुफ़=रद्दोबदल या परिवर्तन; विलायत= विदेशीपन; अह्द=वादा; आतिशो-आबो-बाद=आग,पानी और हवा; अर्ज़्रे-वतन= देश का नक्शा; हाफ़िज़े= स्मृतियां