भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तस्वीरें / राजेश चड्ढ़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>तस्वीरें चिपकी रहती हैं दीवारों पर । जब कभी उन से , लिपट जाती ह…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
<poem>तस्वीरें
 
<poem>तस्वीरें
 
 
चिपकी रहती हैं
 
चिपकी रहती हैं
 
 
दीवारों पर ।
 
दीवारों पर ।
 
 
जब कभी
 
जब कभी
 
 
उन से ,
 
उन से ,
 
 
लिपट जाती हैं
 
लिपट जाती हैं
 
 
स्मृतियां ,
 
स्मृतियां ,
 
 
बोलने लगती हैं
 
बोलने लगती हैं
 
 
तस्वीरें ।</poem>
 
तस्वीरें ।</poem>

04:38, 23 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

तस्वीरें
चिपकी रहती हैं
दीवारों पर ।
जब कभी
उन से ,
लिपट जाती हैं
स्मृतियां ,
बोलने लगती हैं
तस्वीरें ।