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"अपनी रुसवाई तेरे नाम / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ
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एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ <br><br>
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भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ  
  
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सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ
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मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह
भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ <br><br>
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अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ  
  
सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ <br>
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तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ <br><br>
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जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ  
  
मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह <br>
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मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ <br><br>
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ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ  
  
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तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात  
जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ <br><br>
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जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ  
 
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मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार <br>
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20:02, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ
एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या-क्या देखूँ

नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ
आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहरा देखूँ

शाम भी हो गई धुँधला गई आँखें भी मेरी
भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ

सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ

मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह
अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ

तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब
जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ

मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ

तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात
जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ