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"हरापन नहीं टूटेगा / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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वक्ष के ऊपर गढ़ी हैं
 
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बन्धु! ज्ब-तक
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दर्द का यह स्रोत-सावन नहीं टूटेगा
 
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हरापन नहीं टूटेगा
 
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12:42, 26 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

टूट जायेंगे
हरापन नहीं टूटेगा

कुछ गए दिन
शोर को कमज़ोर करने में
कुछ बिताए
चाँदनी को भोर करने में
रोशनी पुरज़ोर करने में

चाट जाये धूल की दीमक भले ही तन
मगर हरापन नहीं टूटेगा

लिख रही हैं वे शिकन
जो भाल के भीतर पड़ी हैं
वेदनाएँ जो हमारे
वक्ष के ऊपर गढ़ी हैं

बन्धु! जब-तक
दर्द का यह स्रोत-सावन नहीं टूटेगा

हरापन नहीं टूटेगा