भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चलो ये तो सलीका है बुरे को मत बुरा कहिए / अज़ीज़ आज़ाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
अगर ज़िंदा हैं क़िस्मत से बुजुर्गों की दुआ कहिए
 
अगर ज़िंदा हैं क़िस्मत से बुजुर्गों की दुआ कहिए
  
हमारा नाम शामिल है वतन के जाँनिसारों<ref>जान छिड़कने
+
हमारा नाम शामिल है वतन के जाँनिसारों<ref>जान छिड़कने वाले</ref> में
वाले
+
</ref> में
+
 
मगर यूँ तंगनज़री<ref>संकीर्ण-दृष्टि</ref> से हमें मत बेवफ़ा कहिए
 
मगर यूँ तंगनज़री<ref>संकीर्ण-दृष्टि</ref> से हमें मत बेवफ़ा कहिए
  
तुम्हीं पे नाज था हमको वतन के मो’तबर<ref>प्रतिष्ठित
+
तुम्हीं पे नाज था हमको वतन के मो’तबर<ref>प्रतिष्ठित</ref> लोगों
</ref> लोगों
+
 
चमन वीरान-सा क्यूँ है गुलों को क्या हुआ कहिए
 
चमन वीरान-सा क्यूँ है गुलों को क्या हुआ कहिए
  

09:01, 22 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

चलो ये तो सलीका है बुरे को मत बुरा कहिए
मगर उनकी तो ये ज़िद है हमें तो अब ख़ुदा कहिए

सलीकेमन्द लोगों पे यूँ ओछे वार करना भी
सरासर बदतमीज़ी है इसे मत हौसला कहिए

तुम्हारे दम पै जीते हम तो यारों कब के मर जाते
अगर ज़िंदा हैं क़िस्मत से बुजुर्गों की दुआ कहिए

हमारा नाम शामिल है वतन के जाँनिसारों<ref>जान छिड़कने वाले</ref> में
मगर यूँ तंगनज़री<ref>संकीर्ण-दृष्टि</ref> से हमें मत बेवफ़ा कहिए

तुम्हीं पे नाज था हमको वतन के मो’तबर<ref>प्रतिष्ठित</ref> लोगों
चमन वीरान-सा क्यूँ है गुलों को क्या हुआ कहिए

किसी की जान ले लेना तो इनका शौक है ‘आज़ाद’
जिसे तुम क़त्ल कहते हो उसे इनकी अदा कहिए

शब्दार्थ
<references/>