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"यह सपने सुकुमार / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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यह सपने सुकुमार तुम्हारी स्मित से उजले!
यह सपने सुकुमार तुम्हारी स्मित से उजले!<br>
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कर मेरे सजल दृगों की मधुर कहानी,
कर मेरे सजल दृगों की मधुर कहानी,<br>
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इनका हर कण हुआ अमर करुणा वरदानी,
इनका हर कण हुआ अमर करुणा वरदानी,<br>
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उडे़ तृणों की बात तारकों से कहने यह
उडे़ तृणों की बात तारकों से कहने यह<br>
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चुन प्रभात के गीत, साँझ के रंग सलज ले!
चुन प्रभात के गीत, साँझ के रंग सलज ले!<br>
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लिये छाँह के साथ अश्रु का कुहक सलोना,
लिये छाँह के साथ अश्रु का कुहक सलोना,<br>
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चले बसाने महाशून्य का कोना कोना,
चले बसाने महाशून्य का कोना कोना,<br>
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इनकी गति में आज मरण बेसुध बन्दी है,
इनकी गति में आज मरण बेसुध बन्दी है,<br>
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कौन क्षितिज का पाश इन्हें जो बाँध सहज ले।
कौन क्षितिज का पाश इन्हें जो बाँध सहज ले।<br>
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पंथ माँगना इन्हें पाथेय न लेना,
पंथ माँगना इन्हें पाथेय न लेना,<br>
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उन्नत मूक असीम, मुखर सीमित तल देना,
उन्नत मूक असीम, मुखर सीमित तल देना,<br>
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बादल-सा उठ इन्हें उतरना है, जल-कण-सा,
बादल-सा उठ इन्हें उतरना है, जल-कण-सा,<br>
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नभ विद्युत् के बाण, सजा शूलों को रज ले!
नभ विद्युत् के बाण, सजा शूलों को रज ले!<br>
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जाते अक्षरहीन व्यथा की लेकर पाती,
जाते अक्षरहीन व्यथा की लेकर पाती,<br>
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लौटानी है इन्हें स्वर्ग से भू की थाती,
लौटानी है इन्हें स्वर्ग से भू की थाती,<br>
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यह संचारी दीप, ओट इनको झंझा दे,
यह संचारी दीप, ओट इनको झंझा दे,<br>
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आगे बढ़, ले प्रलय, भेंट तम आज गरज ले!
आगे बढ़, ले प्रलय, भेंट तम आज गरज ले!<br>
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छायापथ में अंक बिखर जावें इनके जब,
छायापथ में अंक बिखर जावें इनके जब,<br>
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फूलों में खिल रूप निखर आवें इनके जब,
फूलों में खिल रूप निखर आवें इनके जब,<br>
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वर दो तब यह बाँध सकें सीमा से तुमको,
वर दो तब यह बाँध सकें सीमा से तुमको,<br>
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मिलन-विरह के निमिष-गुँथी साँसों की स्रज ले!</poem>
मिलन-विरह के निमिष-गुँथी साँसों की स्रज ले!<br><br>
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11:52, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

यह सपने सुकुमार तुम्हारी स्मित से उजले!
कर मेरे सजल दृगों की मधुर कहानी,
इनका हर कण हुआ अमर करुणा वरदानी,
उडे़ तृणों की बात तारकों से कहने यह
चुन प्रभात के गीत, साँझ के रंग सलज ले!
लिये छाँह के साथ अश्रु का कुहक सलोना,
चले बसाने महाशून्य का कोना कोना,
इनकी गति में आज मरण बेसुध बन्दी है,
कौन क्षितिज का पाश इन्हें जो बाँध सहज ले।
पंथ माँगना इन्हें पाथेय न लेना,
उन्नत मूक असीम, मुखर सीमित तल देना,
बादल-सा उठ इन्हें उतरना है, जल-कण-सा,
नभ विद्युत् के बाण, सजा शूलों को रज ले!
जाते अक्षरहीन व्यथा की लेकर पाती,
लौटानी है इन्हें स्वर्ग से भू की थाती,
यह संचारी दीप, ओट इनको झंझा दे,
आगे बढ़, ले प्रलय, भेंट तम आज गरज ले!
छायापथ में अंक बिखर जावें इनके जब,
फूलों में खिल रूप निखर आवें इनके जब,
वर दो तब यह बाँध सकें सीमा से तुमको,
मिलन-विरह के निमिष-गुँथी साँसों की स्रज ले!