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"हेत रा रंग / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | ||
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जरूरी हुवै | जरूरी हुवै | ||
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23:21, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
कूड़ कोनी कथीजी
कै हेत रा
हजार रंग हूवै।
उण बगत रै बायरै में
म्हैं सूंघतो
प्रीत री सौरम
रात्यूं रास करतो
सपनां रे आगणै
हियै रचतो
एक इन्दरधनख।
बगत परवाण
हणै ई
हर रा नूंवां निरवाळा रंग
म्हारै सामीं ऊभा है
चितराम अवस बदळग्या।
स्यात
इण बेरंग
हुंवती दुनियां नै
रंगीन देखण सारू
जरूरी हुवै
हेत रंगी आंख्या।