Last modified on 16 अक्टूबर 2013, at 23:22

"मटकी / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर

 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा   
 
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा   
|संग्रह=म्हारी पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा  
+
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा  
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>

23:22, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

माटी रै सबदां नै
पगां सूं खूंधै
गांठां तोड़ै
अर पसीनो रळा‘र
भासा बणावै।
हाथ री कलम सूं
चाक रै कागद माथै
सिरजै मटकी
न्हेई रो ताप
रचना पीड़ बणै
भावना रा भतूळियां सूं
रचीजै
रंग-रंगीला मांडणा।

कुंभार री मैणत सूं
रचीजी मटकी
कविता सूं
कम कठै है ?