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"छोरी: तीन / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर

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10:21, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

बरतण मांजती बगत
छोरी बांचै है
आपरी तकदीर
हाथ री लीकट्यां में
अर सोधै है सपनां
उछाव समेत
सपनै सूं जाग‘र
छोरी भींच लेवै मुट्ठी
अर अमूंझ‘र
धोय न्हाखै हाथ
राख सूं।

छोरी रै अंतस में
एक धुकणो है
जिण रै खारै धुंवै सूं
जूझती छोरी
उडीकै है
मेह नै।