भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सावन सुअना माँग भरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: सावन सुअना माँग भरी बिरना तो चुनरी रँगाई अनमोल। माता ने दीन्हेगउ…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKLokRachna
 +
|रचनाकार=अज्ञात
 +
}}
 +
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 +
|भाषा=अवधी
 +
}}
 +
{{KKCatAwadhiRachna}}
 +
<poem>
 
सावन सुअना माँग भरी बिरना तो चुनरी रँगाई अनमोल।
 
सावन सुअना माँग भरी बिरना तो चुनरी रँगाई अनमोल।
 
 
माता ने दीन्हेगउ नौ मन सोनवाँ तौ ददुली ने लहर पटोर।।
 
माता ने दीन्हेगउ नौ मन सोनवाँ तौ ददुली ने लहर पटोर।।
 
 
भैया ने दीन्हेगउ चढ़न को घेड़वा, भौजी मोतिन को हार।
 
भैया ने दीन्हेगउ चढ़न को घेड़वा, भौजी मोतिन को हार।
 
 
माता के राये ते नदिया बहति है, ददुली के रोये सागर पार।।
 
माता के राये ते नदिया बहति है, ददुली के रोये सागर पार।।
 
 
भैया के रोये टुका भीजत है, भौजी के दुइ-दुइ आँस।
 
भैया के रोये टुका भीजत है, भौजी के दुइ-दुइ आँस।
 +
</poem>

15:24, 29 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सावन सुअना माँग भरी बिरना तो चुनरी रँगाई अनमोल।
माता ने दीन्हेगउ नौ मन सोनवाँ तौ ददुली ने लहर पटोर।।
भैया ने दीन्हेगउ चढ़न को घेड़वा, भौजी मोतिन को हार।
माता के राये ते नदिया बहति है, ददुली के रोये सागर पार।।
भैया के रोये टुका भीजत है, भौजी के दुइ-दुइ आँस।