भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काहे को ब्याहे बिदेस / अमीर खुसरो" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अमीर खुसरो
 
|रचनाकार=अमीर खुसरो
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे
 +
काहे को ब्याहे बिदेस 
  
काहेको ब्याहे बिदेस, रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
काहेको ब्याहे बिदेस<br><br>
+
हमको दियो परदेस
 +
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
 +
काहे को ब्याहे बिदेस
  
भैया को दियो बाबुल महले दो-महले<br>
+
हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ
हमको दियो परदेस<br>
+
जित हाँके हँक जैहें
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
काहे को ब्याहे बिदेस<br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस
  
हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ<br><br>
+
हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
जिद हाँके हँक जैहें<br>
+
घर-घर माँगे हैं जैहें  
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
काहे को ब्याहे बिदेस<br><br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस
  
हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ <br>
+
कोठे तले से पलकिया जो निकली
घर-घर माँगे हैं जैहें<br>
+
बीरन में छाए पछाड़
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
काहे को ब्याहे बिदेस<br><br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस
  
कोठे तले से पलकिया जो निकली<br>
+
हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ
बीरन में छाए पछाड़<br>
+
भोर भये उड़ जैहें
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
काहे को ब्याहे बिदेस<br><br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस
  
हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ<br>
+
तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़
भोर भये उड़ जैहें<br>
+
छूटा सहेली का साथ
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
काहे को ब्याहे बिदेस<br><br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस
  
तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़<br>
+
डोली का पर्दा उठा के जो देखा
छूटा सहेली का साथ<br>
+
आया पिया का देस
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
काहे को ब्याहे बिदेस<br><br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस
  
डोली का पर्दा उठा के जो देखा<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे  
आया पिया का देस<br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस  
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस<br><br>
+
 
+
रे, लखिय बाबुल मोरे<br>
+
काहे को ब्याहे बिदेस<br>
+
रे, लखिय बाबुल मोरे<br><br>
+
  
 
''इस रचना के कुछ अंशो को हिन्दी फ़िल्म उमराओ जान के लिये जगजीत कौर ने ख़्य्याम के संगीत में गाया भी है''
 
''इस रचना के कुछ अंशो को हिन्दी फ़िल्म उमराओ जान के लिये जगजीत कौर ने ख़्य्याम के संगीत में गाया भी है''
 +
</poem>

11:47, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ
जित हाँके हँक जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
घर-घर माँगे हैं जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

कोठे तले से पलकिया जो निकली
बीरन में छाए पछाड़
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ
भोर भये उड़ जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़
छूटा सहेली का साथ
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

डोली का पर्दा उठा के जो देखा
आया पिया का देस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे

इस रचना के कुछ अंशो को हिन्दी फ़िल्म उमराओ जान के लिये जगजीत कौर ने ख़्य्याम के संगीत में गाया भी है