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"जेठ का जुल्म / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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23:17, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

आग लगी है
सिर के ऊपर चढ़े सूर्य में
जेठ का जुल्म
जमीन की जवानी जलाए है
प्यासा खड़ा है
दिन का सूखा पहाड़
ओस के आसरे में

गह्वर मुँह बाए
मेघ का नहीं
ताप का तपा पानी
रेत पर रेंगता
सिसकता है

रचनाकाल: २६-०५-१९७३