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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है
कहाँ वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख़्वाब जैसा है
बदन में आग सी मगर कभी कोई देखे कोई पढ़े तो सही दिल आईना है तो चेहरा गुलाब जैसा है <br>के ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब किताब जैसा है <br><br>
कहाँ वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल सामने है जैसे <br>मगर तिश्नगी नहीं जाती तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख़्वाब ये क्या सितम है के दरिया सराब जैसा है <br><br>
मगर कभी कोई देखे कोई पढ़े तो सही <br>दिल आईना है तो चेहरा किताब जैसा है <br><br> वो सामने है मगर तिश्नगी नहीं जाती <br>ये क्या सितम है के दरिया सराब जैसा है <br><br>  "फ़राज़" संग-ए-मलामत से ज़ख़्म ज़ख़्म सही <br>हमें अज़ीज़ है ख़ानाख़राब जैसा है <br><br/poem>
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