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Kavita Kosh से
अभी तो हमको रुलाने का खेल ज़ारी है
कभी तो सेज पे दुल्हन केदुलहन की, कभी मरघट में
गुलाब! तुमने भी क्या ज़िन्दगी गुज़ारी है!
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