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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}{{KKPageNavigation|सारणी=आत्म-बोध / मृदुल कीर्ति|आगे=आत्म-बोध / भाग 7 / मृदुल कीर्ति|पीछे=आत्म-बोध / भाग 5 / मृदुल कीर्ति}}<Poempoem>
तजत मोह, माया और रागा, जीवन मुक्ता जगत विरागा,
आत्मानंद प्रकाशित होई, जस घट भीतर दीपक जोई॥५१॥