भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हिज़्र हिज्र के सवाल पे बवाल कम नहीं हुआचुप रहे भले मग़र मगर मलाल कम नहीं हुआ I
दोस्तों ने डाल दी कबाक़बा-ए-ख़ार , हाय रेज़िन्दगी-सराय में कमाल कम नहीं हुआ I
इस तरह लगाव था कि सिर कटे को देखकर
धड़ पकड़ लिया गया उछाल कम नहीं हुआ I
सोचते रहे निज़ात किस तरह मिले मग़रमगरदिन-ब-दिन बढ़ा किया ये जाल कम नहीं हुआ
</poem>