भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अतीत के प्राचीर से
प्रत्यक्ष उतरते हैं
आमोद , आलिंगन , अपराध , आपाधापी
अंतहीन अथाह अथक ऊब-चूभ लिये
मेरा मैं प्रबल है अंतिम श्वास तक, पर
पश्ताचाप, संताप कराह उठता है `-तुम`
नील पड़ी नसों, देह के कालेपन पर
मन शने-शने शनै:शनै: आकृति उकेरता है - तुम
काली पुतलियों पर तिरते
श्वेत स्वप्न स्पंदित होते हैं !!.
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits