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आ के सज्जाद / मीर तक़ी 'मीर'

No change in size, 11:04, 2 अक्टूबर 2009
कौन खोलेगा तेरे बन्द-ए-कबा मेरे बाद
वो हवाख़्वाह-ए-चमन हूं हूँ कि चमन में हर सुब्ह
पहले मैं जाता था और बाद-ए-सबा मेरे बाद
शायद आ जाए कोई आबला पा मेरे बाद
मुंह मुँह पे रख दामन-ए-गुल रोएंगे मुर्ग़ान-ए-चमन
हर रविश ख़ाक उड़ाएगी सबा मेरे बाद
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