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Kavita Kosh से
कौन खोलेगा तेरे बन्द-ए-कबा मेरे बाद
वो हवाख़्वाह-ए-चमन हूं हूँ कि चमन में हर सुब्ह
पहले मैं जाता था और बाद-ए-सबा मेरे बाद
शायद आ जाए कोई आबला पा मेरे बाद
हर रविश ख़ाक उड़ाएगी सबा मेरे बाद