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तरकश / ऋषभ देव शर्मा

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*[[हँस के हरेक ज़हर को पी जाय फकीरा / ऋषभ देव शर्मा ]]
*[[एक बड़े ऊँचे फाटक से आग उठी, सडकों लहरी / ऋषभ देव शर्मा ]]
*[[ अब भारत नया बनाएँगे, हम वंशज गाँधी के /*[[गलियों की आवाज़ आम है , माना ख़ास नहीं होगी /*[[योगी बन अन्याय देखना, इसको धर्म नहीं कहते हैं / *[[मंच पर केवल छुरे हैं, या मुखौटे हैं /*[[दृष्टि धुँधली, स्वाद कडुआने लगा /*[[पग-पग घर-घर हर शहर, ज्वालामय विस्फोट /*[[कुर्सी का आदेश कि अब से, मिल कर नहीं चलोगे /*[[माना कि भारतवर्ष यह संयम की खान है /*[[नस्ल के युद्ध हैं /*[[हिंसा की दूकान खोलकर, बैठे ऊँचे देश / *[[लोकशाही के सभी सामान लाएँगे /*[[अपने हक में वोट दिला के, क्या उत्ती के पाथोगे /*[[पाक सीमा पर बसे इक गाँव में यह हाल देखा /*[[क्या हुआ जो गाँव में घर-घर अँधेरा है /*[[धार लगा कर सब आवाजें, आरी करनी हैं /*[[औंधी कुर्सी, उस पर पंडा /*[[कुर्ते की जेबें खाली हैं,औ' फटा हुआ है पाजामा /*[[मानचित्र को चीरती, मज़हब की शमशीर / *[[सभी रंग बदरंग हैं, कैसे खेलूँ रंग?*[[लोगों ने आग सही कितनी /*[[मिलीं शाखें गिलहरी को इमलियों की /      
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