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यह तुम थीं / नागार्जुन

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<Poem>
कर गई चाक
 
तिमिर का सीना
 
जोत की फाँक
 
यह तुम थीं
 
सिकुड़ गई रग-रग
 
झुलस गया अंग-अंग
 
बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार
 
उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार
 
अचानक उमगी डालों की सन्धि में
 
छरहरी टहनी
 
पोर-पोर में गसे थे टूसे
 
यह तुम थीं
 
झुका रहा डालें फैलाकर
 
कगार पर खड़ा कोढ़ी गूलर
 
ऊपर उठ आई भादों की तलैया
 
जुड़ा गया बौने की छाल का रेशा-रेशा
 
यह तुम थीं !
'''1957 में रचित</poem>
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