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मैं वह धनु हूँ / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=इत्यलम् / अज्ञेय
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<Poem>
: मैं वह धनु हूँ, जिसे साधने
में प्रत्यंचा टूट गई है।
स्खलित हुआ है बाण, यदपि ध्वनि
की प्रत्यंचा टूट गई है!
'''लाहौर, 15 जून, 1935'''
</poem>
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