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क्यूँ चुप-चुप सा क्यूँ खड़ा है दर्द
आँखों में जब हरा है दर्द
हँसते-खिलते लोगों से मिलमिलने-जुलने पर कुछ तो शायद डरा कम होना था, बढ़ा है दर्द
पलकों की छत पर है रोकापे रुकता क्यूँ मुंडेरों पे मरा शायद के कुछ डरा है दर्द
यादों की इक आग जला करमें जल के कहा है हमने कहा के खरा है दर्द
तुमने वफ़ा के सफ़र राह ए वफा में 'श्रद्धा'बस सुना देखा, लिखा और , पढ़ा है दर्द
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