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सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से
सो अपने आप को बरबाद करके कर के देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुग्नू जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी
सो अबके दोनों ही चालें बदल के देखते हैं
यह कौन है सरे सर-ए-साहिल कि डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं
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