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केंचुआ / मनोज श्रीवास्तव

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'''केंचुआ'''
केंचुआ पैदाइशी अंधा नहीं होता --वह भीरु होता है,
कुछ बेहतर कर गुजरने की चाह में
सिर टकरा-टकराकर
एक उपजाऊ व्यवस्था का
क्या सचमुच केंचुआ बनने का
दमखम है हममें,
नि:संदेह ! केंचुआ बनने के लिए
हमें अपने भौतिक-अभौतिक अस्तित्त्व को
खंगालना होगा,
खुद को एक परिशोधन कारखाना -शाला बनाना होगा.