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मुंडेर पर पतझड़ / अशोक लव

No change in size, 20:50, 3 अगस्त 2010
एकाकीपन के मध्य
स्मरीतयों स्मृतियों के खुले आकाश पर
विचरण कर रहे हैं
उदासियों के पक्षी
कहाँ -कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
बैठते चले जा रहे हैं
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना -कोना
क्यों आ जाता है
वसंत के तुंरत बाद
पतझड़ ?
क्यों नहीं भाति भाती उदासियों को
खुशियों की
नन्ही चमकीली बूँदें ?
</poem>
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