भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
एकाकीपन के मध्य
विचरण कर रहे हैं
उदासियों के पक्षी
कहाँ -कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
बैठते चले जा रहे हैं
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना -कोना
क्यों आ जाता है
वसंत के तुंरत बाद
पतझड़ ?
क्यों नहीं भाति भाती उदासियों को
खुशियों की
नन्ही चमकीली बूँदें ?
</poem>