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देखा हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली

94 bytes removed, 21:39, 9 सितम्बर 2010
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<poem>
देखा हुआ सा कुछ है
:तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है
:उलझा हुआ सा कुछ
देखा हुआ सा कुछ है <br>:तो सोचा हुआ सा कुछ <br>हर वक़्त मेरे साथ है<br>:उलझा हुआ सा कुछ<br><br>होता है यूँ भी, रास्ता<br>:खुलता नहीं कहीं<br>जंगल-सा फैल जाता है<br>:खोया हुआ सा कुछ<br><br>साहिल की गीली रेत पर<br> :बच्चों के खेल-सा <br> हर लम्हा मुझ में बनता <br>:बिखरता हुआ सा कुछ <br><br>फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया <br>:कुछ इस तरह <br>हर शय से मुस्कुराता है <br>:रोता हुआ सा कुछ <br><br>धुँधली-सी एक याद किसी <br>:क़ब्र का दिया <br>और! मेरे आस-पास <br>:चमकता हुआ सा कुछ<br><br>
साहिल की गीली रेत पर :बच्चों के खेल-सा हर लम्हा मुझ में बनता:बिखरता हुआ सा कुछ  फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया :कुछ इस तरह हर शय से मुस्कुराता है :रोता हुआ सा कुछ  धुँधली-सी एक याद किसी :क़ब्र का दिया और! मेरे आस-पास :चमकता हुआ सा कुछ कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है<br>
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है
</poem>
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