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अब के रुत बदली तो ख़ुश्बू का सफ़र देखेगा कौन <br> | अब के रुत बदली तो ख़ुश्बू का सफ़र देखेगा कौन <br> |
00:53, 28 जनवरी 2008 का अवतरण
अब के रुत बदली तो ख़ुश्बू का सफ़र देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे पर देखेगा कौन
देखना सब रक़्स-ए-बिस्मल में मगन हो जायेंगे
जिस तरफ़ से तीर आयेगा उधर देखेगा कौन
वो हवस हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है
लोग तो फल-फूल देखेंगे शजर देखेगा कौन
हम चिराग़-ए-शब ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक़द्दर और सहर देखेगा कौन
आ फ़सील-ए-शहर से देखें ग़नीम-ए-शहर को
शहर जलता हो तो तुझ को बाम पर देखेगा कौन