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"अब उन हसीन अदाओं का रंग छूट गया / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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गुलाब! तुमने भी तो फेंकी थी हवा में कमंद
 
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पहुँच न पाए थे उन तक कि हाथ छूट गया
 
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07:56, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


अब उन हसीन अदाओं का रंग छूट गया
हमारे प्यार का सपना ही जैसे टूट गया

ये हमने माना कि हरदम चलेगा दौर यही
मिलेगा वह कहाँ प्याला जो गिरके टूट गया

कभी तो फिर भी अकेले में मिल ही जाओगे
भले ही आज है मेले में साथ छूट गया

वे और हैं जो बजाते हैं ज़िन्दगी का सितार
छुआ था हमने तो जैसे ही, तार टूट गया

गुलाब! तुमने भी तो फेंकी थी हवा में कमंद
पहुँच न पाए थे उन तक कि हाथ छूट गया