भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गिले फ़िज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुये / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल गिले फ़ुज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के ह...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अहमद फ़राज़ | |रचनाकार=अहमद फ़राज़ | ||
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | [[Category: | + | [[Category:ग़ज़ल]] |
+ | |||
गिले फ़ुज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुए <br> | गिले फ़ुज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुए <br> |
01:00, 28 जनवरी 2008 का अवतरण
गिले फ़ुज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुए
सो चुप रहा सितम-ए-नारवा के होते हुए
ये क़ुर्बतों में अजब फ़ासले पड़े कि मुझे
है आश्ना की तलब आश्ना के होते हुए
वो हिलागर हैं जो मजबूरियाँ शुमार करें
चिराग़ हम ने जलायें हवा के होते हुये
न कर किसी पे भरोसा के कश्तियाँ डूबीं
ख़ुदा के होते हुये नाख़ुदा के होते हुये
किसे ख़बर है कि कासा-ब-दस्त फिरते हैं
बहुत से लोग सरों पर हुमा के होते हुए
"फ़राज़" ऐसे भी लम्हें कभी कभी आये
कि दिल गिरिफ़्ता रहा दिलरुबा के होते हुए