भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हांसता लोग / प्रमोद कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्र…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा | |संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा | ||
}} | }} | ||
− | |||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | < | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} |
− | + | <poem> | |
हांसता-हांसता | हांसता-हांसता | ||
अचाणचकै चुप क्यूं हो ज्यावै लोग | अचाणचकै चुप क्यूं हो ज्यावै लोग | ||
घणी देर तांई | घणी देर तांई | ||
− | इकलग क्यूं नीं सकै | + | इकलग क्यूं नीं सकै हांस। |
सोचूं: | सोचूं: | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 18: | ||
जिकै नै देखण री | जिकै नै देखण री | ||
नई हुवै वां मांय | नई हुवै वां मांय | ||
− | + | हिम्मत। | |
− | + | ||
</Poem> | </Poem> |
13:47, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
हांसता-हांसता
अचाणचकै चुप क्यूं हो ज्यावै लोग
घणी देर तांई
इकलग क्यूं नीं सकै हांस।
सोचूं:
स्यात हांसता-हांसता
दीख ज्यावै
वानै आपरौ ई चै‘रौ
जिकै नै देखण री
नई हुवै वां मांय
हिम्मत।