भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इक़बाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> आम मशरिक़ के मुसलमानों का दि…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=इक़बाल | + | |रचनाकार=अल्लामा इक़बाल |
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatGhazal}} |
<poem> | <poem> | ||
आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है | आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है |
14:24, 26 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है
वहाँ कुंतर सब बिल्लोरी है, यहाँ एक पुराना मटका है
इस दौर में सब मिट जायेंगे, हाँ बाक़ी वो रह जायेगा
जो क़ायम अपनी राह पे है, और पक्का अपनी हट का हे
अए शैख़-ओ-ब्रह्मन सुनते हो क्या अह्ल-ए-बसीरत कहते हैं
गर्दों ने कितनी बुलंदी से उन क़ौमों को दे पटका है