भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"याद तुम्हारी आती है / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) |
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
अभिमानी मन का मान डोल उठता है जब , | अभिमानी मन का मान डोल उठता है जब , | ||
तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है ! | तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है ! | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
08:57, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
जब पलकें झपका कर नभ में तारे हँसते,
तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है !
जब झूम-झूम उठते फूलों के दल के दल ,
मधुमय वसन्तश्री राग लुटाती आती है
गुन-गुन के गुंजन में वन की डाली-दाली
,सौरभ मधु से मधुपों की प्यास मिटाती है ,
अमराई की डालों से उठती कूक पिकी की आकुलता
तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है !
जब किसी द्वार पर अपनी झोली फैला कर ,
कोई अंधा भिक्षुक जिसका घर-बार नहीं ,
गा उठता कोई करुण मधुर संगीत
कि दाता जो देदे वह होगा अस्वीकार नहीं !
अभिमानी मन का मान डोल उठता है जब ,
तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है !