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श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित। | श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित। | ||
बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।। | बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।। | ||
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सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित। | सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित। | ||
बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित।। | बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित।। | ||
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तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित? | तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित? | ||
घोर भव अपार सिंधु तुलसी किमि तरित।। | घोर भव अपार सिंधु तुलसी किमि तरित।। | ||
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श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि। | श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि। | ||
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।। | सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।। | ||
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देखत दुख-दोष-दुरित-दाह -दादिद-दरनि। | देखत दुख-दोष-दुरित-दाह -दादिद-दरनि। | ||
सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।। | सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।। | ||
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महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि। | महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि। | ||
तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।। | तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।। | ||
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20:41, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण
पद संख्या 19 तथा 20
(19)
श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित।
बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।।
सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित।
बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित।।
तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित?
घोर भव अपार सिंधु तुलसी किमि तरित।।
(20)
श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि।
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।।
देखत दुख-दोष-दुरित-दाह -दादिद-दरनि।
सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।।
महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि।
तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।।