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"मृत्तिका दीप / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

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मत आँख मीचो<br>
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और उकसाते रहो बाती<br>
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न अपने हाथ खींचो<br>
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फिर मुझे चाहे बुझा दो<br>
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हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष ।<br><br>
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जर्जर रूई का जीर्ण धागा
भूल कर भी तो कभी<br>
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मैंने न कुछ वरदान माँगा<br>
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स्नेह की बूँदें चुवाओ<br>
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जी करे जितना जलाओ<br>
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क्या मिलेगा देख मेरा धूम्र कालिख वेश।
  
शांति, शीतलता, अपरिचित<br>
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ही तुम्हारे द्वार आया<br>
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और फिर भी मूक हो तुम<br>
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यदि यही तो फूँक दो तुम<br>
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फिर किसे निर्वाण का भय<br>
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जब अमर ही हो चुकेगा जलन का संदेश ।<br><br>
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जब अमर ही हो चुकेगा जलन का संदेश।
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10:11, 5 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेष
एक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष।

हाय जी भर देख लेने दो मुझे
मत आँख मीचो
और उकसाते रहो बाती
न अपने हाथ खींचो
प्रात जीवन का दिखा दो
फिर मुझे चाहे बुझा दो
यों अंधेरे में न छीनो-
हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष।

तोड़ते हो क्यों भला
जर्जर रूई का जीर्ण धागा
भूल कर भी तो कभी
मैंने न कुछ वरदान माँगा
स्नेह की बूँदें चुवाओ
जी करे जितना जलाओ
हाथ उर पर धर बताओ
क्या मिलेगा देख मेरा धूम्र कालिख वेश।

शांति, शीतलता, अपरिचित
जलन में ही जन्म पाया
स्नेह आँचल के सहारे
ही तुम्हारे द्वार आया
और फिर भी मूक हो तुम
यदि यही तो फूँक दो तुम
फिर किसे निर्वाण का भय
जब अमर ही हो चुकेगा जलन का संदेश।