भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तिरसा / रवि पुरोहित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार= रवि पुरोहित
 
|रचनाकार= रवि पुरोहित
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>जनपथ माथै
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
जनपथ माथै
 
जन नीं दिखै
 
जन नीं दिखै
 
गुरू चेलां सूं
 
गुरू चेलां सूं

11:22, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

जनपथ माथै
जन नीं दिखै
गुरू चेलां सूं
पढणो सीखै
कैङो जमानो आयो भाई
हाथी सस्ता
मूंगा दांत
चौडे-चौगानां बिकै !

राजघाट
फूलां नैं तरसै
जीव-जिलफ
रोटी पर बरसै
कैङो जमानो आयो भाई
पणघट अबै
मरै तिसायो
बाप मर्यां
बेटो मन हरसै !

संसद
वर, वर-वर नै धापी
सदाचार
बखाणै पापी
कैङो जमानो आयो भाई
काण-कायदो
चांद ईद रो
बेटो बाप नैं देवै थापी !


धायो,
म्हैं तो धायो भाई
खूणियां तांणी जोङूं हाथ,
पळ-पळ
मर-मर
कद लग जीऊं
थारो-म्हारो इत्तो ई साथ
मंजूर म्हनैं ई मरणो है पण
चावूं
जीवन पैलां भरल्यूँ बांथ ।