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"दो लड़कियों का पिता होने से / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर

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पपीते के पेड़ की तरह मेरी पत्नी  
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पपीते के पेड़ की तरह मेरी पत्नी
मैं पिता हूँ  
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मैं पिता हूँ
 
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दो चिड़ियाओं का जो चोंच में धान के कनके दबाए
दो चिड़ियाओं का जो चोंच में धान के कनके दबाए  
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पपीते की गोद में बैठी हैं
 
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सिर्फ़ बेटियों का पिता होने से भर से ही
पपीते की गोद में बैठी हैं  
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कितनी हया भर जाती है
 
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शब्दों में
सिर्फ़ बेटियों का पिता होने से भर से ही  
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मेरे देश में होता तो है ऐसा
 
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कि फिर धरती को बाँचती हैं
कितनी हया भर जाती है  
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पिता की कवि-आंखें.......
 
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बेटियों को गुड़ियों की तरह गोद में खिलाते हैं हाथ
शब्दों में  
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बेटियों का भविष्य सोच बादलों से भर जाता है
 
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कवि का हृदय
मेरे देश में होता तो है ऐसा  
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एक सुबह पहाड़-सी दिखती हैं बेटियाँ
 
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कलेजा कवि का चट्टान-सा होकर भी थर्राता है
कि फिर धरती को बाँचती हैं  
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पत्तियों की तरह
 
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और अचानक डर जाता है कवि चिड़ियाओं से
पिता की कवि-आंखें.......  
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चाहते हुए उन्हें इतना
 
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बेटियों को गुड़ियों की तरह गोद में खिलाते हैं हाथ  
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बेटियों का भविष्य सोच बादलों से भर जाता है  
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कवि का हृदय  
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एक सुबह पहाड़-सी दिखती हैं बेटियाँ  
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कलेजा कवि का चट्टान-सा होकर भी थर्राता है  
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पत्तियों की तरह  
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और अचानक डर जाता है कवि चिड़ियाओं से  
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चाहते हुए उन्हें इतना  
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करते हुए बेहद प्यार।
 
करते हुए बेहद प्यार।
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17:54, 15 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

पपीते के पेड़ की तरह मेरी पत्नी
मैं पिता हूँ
दो चिड़ियाओं का जो चोंच में धान के कनके दबाए
पपीते की गोद में बैठी हैं
सिर्फ़ बेटियों का पिता होने से भर से ही
कितनी हया भर जाती है
शब्दों में
मेरे देश में होता तो है ऐसा
कि फिर धरती को बाँचती हैं
पिता की कवि-आंखें.......
बेटियों को गुड़ियों की तरह गोद में खिलाते हैं हाथ
बेटियों का भविष्य सोच बादलों से भर जाता है
कवि का हृदय
एक सुबह पहाड़-सी दिखती हैं बेटियाँ
कलेजा कवि का चट्टान-सा होकर भी थर्राता है
पत्तियों की तरह
और अचानक डर जाता है कवि चिड़ियाओं से
चाहते हुए उन्हें इतना
करते हुए बेहद प्यार।