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"माँ तुम गंगाजल होती हो / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

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मेरी ही यादों में खोई
 
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अक्सर तुम पागल होती हो
 
अक्सर तुम पागल होती हो
:माँ तुम गंगा-जल होती हो !
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जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
 
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मन का सूना संवत्सर
 
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:जब-जब हम लय गति से भटकें
 
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:तब-तब तुम मादल होती हो ।
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व्रत, उत्सव, मेले की गणना
 
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आजीवन झूला करती हो
 
आजीवन झूला करती हो
 
:तुम कार्तिक की धुली चाँदनी से
 
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:ज्यादा निर्मल होती हो ।
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पल-पल जगती-सी आँखों में
 
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मंदिर में घंटियाँ बजाती
 
मंदिर में घंटियाँ बजाती
 
:जब-जब ये आँखें धुंधलाती
 
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:तब-तब तुम काजल होती हो ।
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हम तो नहीं भगीरथ जैसे
 
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कैसे सिर से कर्ज उतारें
 
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तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
 
तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें ।
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:तुझ पर फूल चढ़ाएँ कैसे
 
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:तुम तो स्वयं कमल होती हो ।
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17:50, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

मेरी ही यादों में खोई
अक्सर तुम पागल होती हो
माँ तुम गंगा-जल होती हो!
माँ तुम गंगा-जल होती हो!

जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आँसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों-सा
मन का सूना संवत्सर
जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।

व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
तुम कार्तिक की धुली चाँदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।

पल-पल जगती-सी आँखों में
मेरी ख़ातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियाँ बजाती
जब-जब ये आँखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।

हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें।
तुझ पर फूल चढ़ाएँ कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।