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"अंगद जी का दूतत्व / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

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सबको भलो है राजा रामके रहम हीं।8।
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‘आयो! आयो! आयो सोई बानर बहोरि!’ भयो,
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सोरू चहुँ ओर लंका आएँ जुबराजकें।
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एक काढैं़ सौंज, एक धौंज करैं, ‘कहा ह्वैहै,
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पोच भाई’, महासोचु सुभअसमाज  कें।।
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गाज्यो कपिराजु रघुनाथकी सपथ करि ,
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मूँदे कान जातुधान मानो गाजें गाजकें।
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सहमि सुखात बातजातकी सुरति करि,
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लवा ज्यों लुकात, तुलसी झपेटें बाजकें।9।
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तुलसी बल रघुबीरजू कें बालिसुतु
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वाहि न गनत, बात कहत करेरी -सी।
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‘बकसीस ईसजू की खीस होत देखिअत,
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रिस काहें लागति,  कहत हौं मै तेरी-सी।।
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चढ़ि गढ़-मढ़ दृढ़, कोटकें कँगूरें,
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कोपि, नेकु धका देहैं ढेलनकी ढेरी-सी।।
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सुनु दसमाथ! नाथ-साथके हमारे मपि
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हाथ लंका लाइहैं  तौ रहेगी  हथेरी-सी।10।
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18:02, 1 मई 2011 का अवतरण


( छंद संख्या (9) से (10) )
(9)

 ‘आयो! आयो! आयो सोई बानर बहोरि!’ भयो,
सोरू चहुँ ओर लंका आएँ जुबराजकें।


 एक काढैं़ सौंज, एक धौंज करैं, ‘कहा ह्वैहै,
पोच भाई’, महासोचु सुभअसमाज कें।।

 गाज्यो कपिराजु रघुनाथकी सपथ करि ,
 मूँदे कान जातुधान मानो गाजें गाजकें।

सहमि सुखात बातजातकी सुरति करि,
 लवा ज्यों लुकात, तुलसी झपेटें बाजकें।9।

(10)

तुलसी बल रघुबीरजू कें बालिसुतु
वाहि न गनत, बात कहत करेरी -सी।

‘बकसीस ईसजू की खीस होत देखिअत,
 रिस काहें लागति, कहत हौं मै तेरी-सी।।

चढ़ि गढ़-मढ़ दृढ़, कोटकें कँगूरें,
कोपि, नेकु धका देहैं ढेलनकी ढेरी-सी।।

सुनु दसमाथ! नाथ-साथके हमारे मपि
हाथ लंका लाइहैं तौ रहेगी हथेरी-सी।10।