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"राम की कृपालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

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'''लक्ष्मण मूर्च्छा'''
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राम की कृपालुता  / तुलसीदास/
  
  
'''( छंद संख्या 52 53)'''
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'''( छंद संख्या 4, 5)'''
  
(52)
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  मानी मेघनादसों प्रचारि भिरे भारी भट,
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आपने अपन पुरूषारथ न ढील की।।
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घायल लखनलालु लखि बिलखाने रामु,
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भई आस सिथिल जगन्निवास-दीलकी।।
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भाई को न मोहु  छोहु सीयको  न तुलसीस,
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कहैं ‘मैं बिभीषनकी कछु न सबील की’।
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लाज बाँह बोलेकी, नेवाजेकी  सँभार-सार,
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साहेबु न रामु-से बलाइँ सीलकी।52।
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(53)
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कानन बासु!  छसाननु सो रिपु,
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आननश्री ससि जीति लियो है।
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बालि महा बलसालि दल्यो,
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कपि पालि बिभीषनु भूपु कियो है।।
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तीय हरी, रन बंधु पर्यो ,
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पै भर्यो सरनागत सोच हियो है।
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बाँह पगार उदार कृपालु
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कहाँ रघुबीरू सो बीरू बियो है।53।
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20:03, 4 मई 2011 का अवतरण



राम की कृपालुता / तुलसीदास/


( छंद संख्या 4, 5)

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