भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काशी में महामारी / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…)
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
बिकल बिलोकियत , नगरी बिहालकी।।
 
बिकल बिलोकियत , नगरी बिहालकी।।
  
(170) (169)  
+
(170) (170)
 +
  
गौरी नाथ, भोरानाथ, भवत भवानीनाथ!
+
लोक-बेदहूँ बिदित बारानसीकी बड़ाई  
  बिस्वनाथनुर फिरी आन कलिकालकी।
+
बासी नर नारि ईस-अंबिका-सरूप है।
  
संकर-से -नर, गिरिजा-सी नारीं कासीबासी,
+
कालबध कोतवाल, दंडकारि दंडपानि,
  बेद कही, सही ससिसेखर कृपालकी।।
+
  सभसद गनप-से अमित अनूप हैं।।
  
छगुख-गनेस तें महसेके पियरे लोग
+
  तहाँऊ कुचालि कलिकालकी कुरीति ,
बिकल बिलोकियत , नगरी बिहालकी।।
+
कैंधौं जानत न मूढ़ इहाँ भूतनाथ भूप हैं।
 +
 
 +
फलैं फूलैं फैलैं खल, सीदैं साधु पल-पल
 +
खाती दीपमालिका ,ठठाइयत सूप हैं।।
 
  
 
  
 
</poem>
 
</poem>

21:40, 9 मई 2011 का अवतरण


काशी में महामारी-1

 ( छंद 169, 170)


गौरी नाथ, भोरानाथ, भवत भवानीनाथ!
 बिस्वनाथनुर फिरी आन कलिकालकी।

संकर-से -नर, गिरिजा-सी नारीं कासीबासी,
 बेद कही, सही ससिसेखर कृपालकी।।

छगुख-गनेस तें महसेके पियरे लोग
बिकल बिलोकियत , नगरी बिहालकी।।

(170) (170)
 

लोक-बेदहूँ बिदित बारानसीकी बड़ाई
बासी नर नारि ईस-अंबिका-सरूप है।

कालबध कोतवाल, दंडकारि दंडपानि,
 सभसद गनप-से अमित अनूप हैं।।

 तहाँऊ कुचालि कलिकालकी कुरीति ,
 कैंधौं जानत न मूढ़ इहाँ भूतनाथ भूप हैं।

फलैं फूलैं फैलैं खल, सीदैं साधु पल-पल
 खाती दीपमालिका ,ठठाइयत सूप हैं।।