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"गीतावली अरण्यकाण्ड पद 11 से 15/पृष्ठ 4" के अवतरणों में अंतर

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जटायुसे भेण्ट
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नीके कै जानत राम हियो हौं |
मेरे एकौ हाथ न लागी |
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प्रनतपाल, सेवक-कृपालु-चित, पितु पटतरहि दियो हौं ||
गयो बपु बीति बादि कानन ज्यों कलपलता दव दागी ||
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दसरथसों न प्रेम प्रतिपाल्यौ, हुतो जो सकल जग साखी |
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त्रिजगजोनि-गत गीध, जनम भरि खाइ कुजन्तु जियो हौं |
बरबस हरत निसाचर पतिसों हठि न जानकी राखी ||
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महाराज सुकृती-समाज सब-ऊपर आजु कियो हौं ||
  
मरत न मैं रघुबीर बिलोके तापस बेष बनाए |
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श्रवन बचन, मुख नाम, रुप चख, राम उछङ्ग लियो हौं |
चाहत चलन प्रान पाँवर बिनु सिय-सुधि प्रभुहि सुनाए ||
+
तुलसी मो समान बड़भागी को कहि सकै बियो हौं ||
  
बार-बार कर मीञ्जि, सीस धुनि गीधराज पछिताई |
 
तुलसी प्रभु कृपालु तेहि औसर आइ गए दोउ भाई ||
 
  
 
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17:27, 5 जून 2011 के समय का अवतरण

(14)
नीके कै जानत राम हियो हौं |
प्रनतपाल, सेवक-कृपालु-चित, पितु पटतरहि दियो हौं ||

त्रिजगजोनि-गत गीध, जनम भरि खाइ कुजन्तु जियो हौं |
महाराज सुकृती-समाज सब-ऊपर आजु कियो हौं ||

श्रवन बचन, मुख नाम, रुप चख, राम उछङ्ग लियो हौं |
तुलसी मो समान बड़भागी को कहि सकै बियो हौं ||