भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हम उनको अपना बना लें, कभी वो खेल तो हो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
पलटता कौन है देखें लगा के मन का दाँव | पलटता कौन है देखें लगा के मन का दाँव | ||
− | + | हँसी-हँसी में कभी आँसुओं का खेल तो हो | |
चलेंगे साथ न मिलकर, ये जानते हैं मगर | चलेंगे साथ न मिलकर, ये जानते हैं मगर |
02:33, 25 जून 2011 का अवतरण
हम उनको अपना बना लें, कभी वो खेल तो हो
सहज है आँखों का मिलना, दिलों का मेल तो हो
पलटता कौन है देखें लगा के मन का दाँव
हँसी-हँसी में कभी आँसुओं का खेल तो हो
चलेंगे साथ न मिलकर, ये जानते हैं मगर
नए-पुराने में थोड़ा-सा तालमेल तो हो
झकोरे तेज हवाओं के हैं सर-आँखों पर
गले गुलाब के नाजुक-सी एक बेल तो हो