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"वे इस पृथ्वी पर / भगवत रावत" के अवतरणों में अंतर
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− | इतने नामालूम कि कोई उनका पता | + | इतने नामालूम कि कोई उनका पता |
− | ठीक-ठीक बता नहीं सकता | + | ठीक-ठीक बता नहीं सकता |
− | उनके अपने नाम हैं लेकिन वे | + | उनके अपने नाम हैं लेकिन वे |
− | इतने साधारण और इतने आमफहम हैं | + | इतने साधारण और इतने आमफहम हैं |
− | कि किसी को उनके नाम | + | कि किसी को उनके नाम |
− | सही-सही याद नहीं रहते | + | सही-सही याद नहीं रहते |
− | उनके अपने चेहरे हैं लेकिन वे | + | उनके अपने चेहरे हैं लेकिन वे |
− | एक दूसरे में इतने घुले-मिले रहते हैं | + | एक दूसरे में इतने घुले-मिले रहते हैं |
− | कि कोई उन्हें देखते ही पहचान नहीं पाता | + | कि कोई उन्हें देखते ही पहचान नहीं पाता |
− | वे हैं, और इसी पृथ्वी पर हैं | + | वे हैं, और इसी पृथ्वी पर हैं |
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− | और सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि उन्हें | + | और सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि उन्हें |
− | रत्ती भर यह अंदेशा नहीं | + | रत्ती भर यह अंदेशा नहीं |
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12:34, 16 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
वे इस पृथ्वी पर
कहीं न कहीं कुछ न कुछ लोग हैं ज़रूर
जो इस पृथ्वी को अपनी पीठ पर
कच्छपों की तरह धारण किए हुए हैं
बचाए हुए हैं उसे
अपने ही नरक में डूबने से
वे लोग हैं और बेहद नामालूम घरों में रहते हैं
इतने नामालूम कि कोई उनका पता
ठीक-ठीक बता नहीं सकता
उनके अपने नाम हैं लेकिन वे
इतने साधारण और इतने आमफहम हैं
कि किसी को उनके नाम
सही-सही याद नहीं रहते
उनके अपने चेहरे हैं लेकिन वे
एक दूसरे में इतने घुले-मिले रहते हैं
कि कोई उन्हें देखते ही पहचान नहीं पाता
वे हैं, और इसी पृथ्वी पर हैं
और यह पृथ्वी उन्हीं की पीठ पर टिकी हुई है
और सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि उन्हें
रत्ती भर यह अंदेशा नहीं
कि उन्हीं की पीठ पर
टिकी हुई यह पुथ्वी।