भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़िन्दगी दर्द का दाह है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
किसने अपनी लटें खोल दीं | किसने अपनी लटें खोल दीं | ||
− | + | चाँदनी पड़ गयी स्याह है! | |
छेद यों बाँसुरी में कई | छेद यों बाँसुरी में कई | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
अब न गाने का उत्साह है | अब न गाने का उत्साह है | ||
− | हमने होठों के | + | हमने होठों के चूमे गुलाब |
किसको काँटों की परवाह है! | किसको काँटों की परवाह है! | ||
<poem> | <poem> |
01:04, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
ज़िन्दगी दर्द का दाह है
प्यार छाहोंभरी राह है
जलते हैं आँसुओं के दिए
उम्र अब आह ही आह है
मिल ही जायेंगे फिर हम कहीं
राह भी है जहाँ चाह है
किसने अपनी लटें खोल दीं
चाँदनी पड़ गयी स्याह है!
छेद यों बाँसुरी में कई
कुछ तो सुर का भी निर्वाह है
जब वही बीच से उठ गए
अब न गाने का उत्साह है
हमने होठों के चूमे गुलाब
किसको काँटों की परवाह है!