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"ज़िन्दगी दर्द का दाह है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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किसने अपनी लटें खोल दीं  
 
किसने अपनी लटें खोल दीं  
चांदनी पड़ गयी स्याह है!
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छेद यों बाँसुरी में कई   
 
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अब न गाने का उत्साह है
 
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हमने होठों के चूमें गुलाब  
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किसको काँटों की परवाह है!   
 
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01:04, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


ज़िन्दगी दर्द का दाह है
प्यार छाहोंभरी राह है

जलते हैं आँसुओं के दिए
उम्र अब आह ही आह है

मिल ही जायेंगे फिर हम कहीं
राह भी है जहाँ चाह है

किसने अपनी लटें खोल दीं
चाँदनी पड़ गयी स्याह है!

छेद यों बाँसुरी में कई
कुछ तो सुर का भी निर्वाह है

जब वही बीच से उठ गए
अब न गाने का उत्साह है

हमने होठों के चूमे गुलाब
किसको काँटों की परवाह है!