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"कोई हमींसे आँख चुराये तो क्या करें / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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उनकी गली से होश था उठने का भी किसे! | उनकी गली से होश था उठने का भी किसे! | ||
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भाती नहीं हो जिसको पँखुरियाँ गुलाब की | भाती नहीं हो जिसको पँखुरियाँ गुलाब की | ||
उसको ग़ज़ल भी रास न आये तो क्या करें! | उसको ग़ज़ल भी रास न आये तो क्या करें! | ||
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01:49, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कोई हमींसे आँख चुराए तो क्या करें!
पर्वत को तिल की ओट छिपाए तो क्या करें!
हम लेके इसे छाना किये हर जगह की ख़ाक
यह दिल कहीं भी चैन न पाए तो क्या करें!
पीना है ज़िन्दगी में घड़ी-दो-घड़ी का शौक
पीकर न कोई होश में आये तो क्या करें!
उनकी गली से होश था उठने का भी किसे!
दुनिया हमींको आँख दिखाए तो क्या करें!
भाती नहीं हो जिसको पँखुरियाँ गुलाब की
उसको ग़ज़ल भी रास न आये तो क्या करें!