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"बिछा रहा जब तक / सुरेश यादव" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारी कविता में
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घिरा रहा
बहुत बार
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शुभ-चिन्तकों से
हथेलियों के बीच…
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बिछा रहा
 
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जब तक सड़क सा !
 
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खड़ा हुआ तन कर
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एक दिन
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अकेला रह गया
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दरख़्त-सा !
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तिनके में आग
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बरसाती मौसम का डर
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अधबुना रह न जाए नीड़
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चिड़िया को फिकर है
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बेचैन हुई उड़ती
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इधर से उधर
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तिनके जुटाती
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जलते चूल्हे से भी
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खींचकर ले गई तिनका
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बुन रही है
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नीड़ में जिसको जल्दी-जल्दी !
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आग है तिनके में
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और
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चिड़िया– आग से बेखबर है
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चिड़िया को बस
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नीड़ की फिकर है।
  
 
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21:36, 19 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


घिरा रहा
शुभ-चिन्तकों से
बिछा रहा
जब तक सड़क सा !
खड़ा हुआ तन कर
एक दिन
अकेला रह गया
दरख़्त-सा !
तिनके में आग
बरसाती मौसम का डर
अधबुना रह न जाए नीड़
चिड़िया को फिकर है
बेचैन हुई उड़ती
इधर से उधर
तिनके जुटाती
जलते चूल्हे से भी
खींचकर ले गई तिनका
बुन रही है
नीड़ में जिसको जल्दी-जल्दी !
आग है तिनके में
और
चिड़िया– आग से बेखबर है
चिड़िया को बस
नीड़ की फिकर है।