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आमुख / गुलाब खंडेलवाल

No change in size, 21:41, 20 जुलाई 2011
कि आपकी चाह किसे है,
आपके कवित्व की परवाह किसे है!
ये ध्वनियांध्वनियाँ, ये अलंकार,
यह भावनाओं की रंग-बिरंगी फुहार
किसका मन मोहती है भला!
सपने में आप इंद्र, कुबेर या कार्तिकेय कुछ भी बन जाएं,
चाहे जितने विशेषणों से अपने को सजा लें,
आईने आइने के सम्मुख कितने भी तन जायें,
यथार्थ के क्षेत्र में तो आपको सदा
धूल ही चाटनी होगी,
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